GAZA में भुखमरी से जूझते बच्चे, मदद की पुकार और राजनीतिक अड़चनें
मार्च 2025 से ग़ज़ा पट्टी में इज़राइल द्वारा लगाई गई नाकेबंदी के चलते वहां मानवीय संकट बेहद गंभीर रूप ले चुका है। खासतौर पर बच्चों की स्थिति चिंताजनक है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवीय संगठनों की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक कम से कम 57 बच्चों की मौत भुखमरी और कुपोषण के कारण हो चुकी है, जबकि 14,000 से अधिक बच्चे गंभीर तीव्र कुपोषण के शिकार हैं।
नाकेबंदी के कारण भोजन, दवाइयाँ और सहायता सामग्री ग़ज़ा तक नहीं पहुँच पा रही हैं। हाल ही में कुछ सहायता ग़ज़ा में पहुंची है, लेकिन यह आवश्यकतानुसार पर्याप्त नहीं है। राजनीतिक और तार्किक बाधाओं के चलते राहत कार्यों में देरी हो रही है।
बच्चों की वकालत करने वाली शख्सियत राचेल अक्कुर्सो (Miss Rachel) का भी ज़िक्र किया गया है, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से ग़ज़ा के बच्चों की मदद के लिए वैश्विक नेताओं से अपील की। इस भावनात्मक अपील को सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रिया मिली कुछ लोगों ने समर्थन किया तो कुछ ने आलोचना की।
इज़राइल सरकार का दावा है कि उन्होंने पर्याप्त सहायता भेजी है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र और ज़मीनी रिपोर्ट्स इसके उलट कहानी बयान करती हैं। कड़ी सुरक्षा जांच, सीमित ट्रकों की आवाजाही और हिंसक संघर्ष ने हालात को और जटिल बना दिया है।
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| गाजा में बच्चे कुछ इस तरह भूख से तड़प रहे हैं |
भारत सहित कई देशों ने ग़ज़ा को मानवीय मदद भेजने की बात कही है, लेकिन सच्चाई ये है कि जब तक कोई मजबूत और सुरक्षित राहत व्यवस्था नहीं बनती, तब तक वहां के लोगों के चेहरों पर सुकून की कोई झलक नज़र नहीं आएगी। ग़ज़ा की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, अगर उन्हें आप एक बार भी दिल से महसूस करें, तो समझ आएगा कि ये सिर्फ किसी दूर की त्रासदी नहीं है, ये उन सभी इंसानों की आवाज़ है, जो बस जीने का हक मांग रहे हैं।
हमे बच्चों की पीड़ा को मानवीय दृष्टिकोण से देखना चाहिए, न कि राजनीतिक चश्मे से। यह समय है कि दुनिया राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर इन मासूमों की जान बचाने के लिए एकजुट हो। "बच्चों की मदद करना कोई पक्ष लेना नहीं है, बल्कि मानवता का कर्तव्य है।"
ग़ज़ा की मौजूदा स्थिति एक ऐसा संकट है, जिसे अनदेखा करना इतिहास में एक नैतिक विफलता के रूप में दर्ज हो सकता है।


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