Students in India Deceive Japanese Nationals: Sent Virus Alerts and Swindled Crores
सकाई ने बिना समय गंवाए उस नंबर पर कॉल किया, क्योंकि उन्हें लगा कि उनका सिस्टम हैक हो गया है। दूसरी ओर फोन उठाने वाले लोग टूटी-फूटी जापानी बोलते हुए खुद को माइक्रोसॉफ्ट का तकनीकी प्रतिनिधि बता रहे थे। उन्होंने सकाई को रिमोट-कंट्रोल सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने के लिए कहा और जब सकाई ने ऐसा किया, तो उनका पूरा सिस्टम इन धोखेबाजों के नियंत्रण में चला गया।
दो करोड़ येन की ठगी और गायब हो गए जालसाज़
ठगों ने सकाई को झांसे में लेकर कहा कि उनका बैंक खाता भी खतरे में है और उन्हें अपनी पूरी राशि एक "सुरक्षित खाते" में ट्रांसफर कर देनी चाहिए। सकाई ने जैसे ही 2 करोड़ येन (लगभग 1.44 लाख अमेरिकी डॉलर) ट्रांसफर किए, जालसाज़ गायब हो गए और सभी संपर्क बंद कर दिए। यह घटना सकाई के लिए एक सदमा थी, और उन्होंने तुरंत स्थानीय पुलिस से संपर्क किया।
जांच का विस्तार और अन्य पीड़ित सामने आए
जैसे ही जापानी पुलिस ने जांच शुरू की, और अधिक पीड़ित सामने आने लगे, जैसे कोजी सुजुकी, मासाशी मत्सुई और शेरपा नोरसांग। इन सभी ने बताया कि उनके साथ भी वही स्क्रिप्ट दोहराई गई थी: वायरस अलर्ट, कॉल सेंटर से संपर्क, रिमोट एक्सेस और फिर ठगी।
जांच में यह भी सामने आया कि यह ठगी सिर्फ बैंक खातों तक सीमित नहीं थी। कुछ मामलों में पीड़ितों को बिटकॉइन ट्रांसफर करने या Apple गिफ्ट कार्ड खरीदने को मजबूर किया गया। इसके पीछे एक पूर्ण साइबर नेटवर्क काम कर रहा था, जिसमें कॉल सेंटर, फर्जी वेबसाइट्स, पॉप-अप एडवर्टाइज़मेंट, और क्रिप्टो वॉलेट्स शामिल थे।
भारत से संचालित हो रहा था गिरोह, CBI की बड़ी कार्रवाई
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, जापान की नेशनल पुलिस एजेंसी (NPA) ने भारत की CBI को अलर्ट किया। दोनों देशों की जांच एजेंसियों ने एक साथ मिलकर IP एड्रेस और डिजिटल ट्रेस का विश्लेषण किया और अंततः पता चला कि यह पूरा नेटवर्क भारत से ही संचालित हो रहा था।
CBI ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के 19 स्थानों पर छापेमारी की और 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। जांच में पाया गया कि इस गिरोह के कई सदस्य जापानी भाषा सीख रहे छात्र हैं। कॉल सेंटर में फोन करने वाले टूटी-फूटी जापानी बोलते थे और कॉल के दौरान हिंदी में बैकग्राउंड में बातचीत साफ सुनाई देती थी, जिससे पुष्टि होती है कि संचालन भारत से हो रहा था।
तकनीकी जाल और माइक्रोसॉफ्ट एज्यूर का दुरुपयोग
CBI की रिपोर्ट में बताया गया कि इन आरोपियों ने माइक्रोसॉफ्ट एज्यूर क्लाउड सर्वर का उपयोग करके फर्जी वेबसाइट्स और वायरस अलर्ट तैयार किए थे। दुर्भावनापूर्ण URL को एडवर्टाइजिंग नेटवर्क्स के ज़रिए जापान में प्रमोट किया जाता था। ये लिंक ऐसे समय में पॉप-अप होते थे जब यूज़र्स किसी वेबसाइट या विंडो को खोलते थे, जिससे यह एक वास्तविक वायरस अलर्ट जैसा प्रतीत होता था।
क्रिप्टो अकाउंट्स और डिजिटल मनी लॉन्ड्रिंग
CBI ने इस गिरोह के खिलाफ IT एक्ट, जबरन वसूली, आपराधिक साजिश और साइबर क्राइम की धाराओं में मामला दर्ज किया है। जांच में सामने आया कि सकाई से जो दो करोड़ येन ठगे गए थे, उनमें से एक हिस्सा बिटकॉइन में कन्वर्ट किया गया और फिर उसे एक Binance अकाउंट में 2.1 BTC के रूप में ट्रांसफर किया गया, जो एक "कपिल गाखर" नामक व्यक्ति से जुड़े वॉलेट में ट्रेस किया गया।
CBI और जापानी एजेंसियों का संयुक्त प्रयास
यह केस भारत और जापान की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच समन्वय का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। माइक्रोसॉफ्ट ने भी जांच में तकनीकी सहयोग दिया, जिससे यह पता लगाने में मदद मिली कि अलर्ट असली नहीं थे और क्लाउड सर्वर का दुरुपयोग किया गया था।
CBI ने फिलहाल दो फर्जी कॉल सेंटर बंद कर दिए हैं और गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ जारी है। इस केस से साफ है कि कैसे साइबर अपराधी भाषा और तकनीक का इस्तेमाल कर वैश्विक स्तर पर लोगों को शिकार बना रहे हैं।
यह घटना भारत में बढ़ते साइबर अपराधों और वैश्विक साइबर सुरक्षा के खतरों की गहराई को दर्शाती है। छात्रों और युवाओं द्वारा इस तरह के अपराध में शामिल होना न केवल नैतिक और कानूनी दृष्टि से घातक है, बल्कि यह देश की छवि को भी धूमिल करता है। साथ ही यह घटना चेतावनी देती है कि अब साइबर सुरक्षा केवल व्यक्तिगत या राष्ट्रीय मसला नहीं रहा, बल्कि यह एक वैश्विक चुनौती बन चुका है।

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