'Golden Dome': Trump's new missile defense plan and rhetoric about Canada
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| अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप |
ट्रंप ने इस प्रणाली की आड़ में अपने पड़ोसी देश कनाडा को एक बार फिर राजनीतिक कटाक्ष का निशाना बनाया है। उन्होंने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनने का पुराना प्रस्ताव दोहराया और कहा कि अगर कनाडा इस योजना में निशुल्क भाग लेना चाहता है, तो उसे अमेरिका में शामिल होना होगा। अन्यथा, यदि वह स्वतंत्र राष्ट्र बना रहता है, तो उसे 61 अरब डॉलर चुकाने होंगे।
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर लिखा, "मैंने कनाडा से कहा है कि यदि वह हमारे उत्कृष्ट 'गोल्डन डोम' सिस्टम का हिस्सा बनना चाहता है, तो उसे हमारा हिस्सा बनना होगा। अन्यथा उन्हें इसकी कीमत चुकानी होगी। वे इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं!"
कनाडा ने संकेत दिए हैं कि वह इस योजना में दिलचस्पी रखता है। देश के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने पुष्टि की कि इस विषय पर अमेरिका के साथ उच्चस्तरीय बातचीत चल रही है। कनाडा और अमेरिका पहले से ही NORAD (North American Aerospace Defense Command) के अंतर्गत सुरक्षा सहयोग में भागीदार हैं। इसके बावजूद, ट्रंप के तीखे बयान ने दोनों देशों के बीच तनाव की आशंका को फिर से जन्म दे दिया है।
मार्क कार्नी ने इस महीने व्हाइट हाउस की यात्रा के दौरान ट्रंप के इस विचार को शालीनता के साथ लेकिन स्पष्ट शब्दों में खारिज कर दिया। उन्होंने साफ किया कि कनाडा अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा और यह "बिक्री के लिए नहीं है"।
क्या है 'गोल्डन डोम' प्रणाली?
ट्रंप ने संसद में अपने भाषण में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के 1983 के रक्षा कार्यक्रम 'Strategic Defense Initiative' का उल्लेख किया। यह पहल मुख्य रूप से सोवियत संघ से आने वाली मिसाइलों से देश की रक्षा के लिए शुरू की गई थी, लेकिन तकनीकी सीमाओं और भारी लागत के चलते वह योजना व्यवहार में नहीं लाई जा सकी।
अब, चार दशक बाद, ट्रंप एक बार फिर ऐसी ही एक महत्वाकांक्षी प्रणाली को नई तकनीक और व्यापक दृष्टिकोण के साथ लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रणाली में सैटेलाइट, रडार और इंटरसेप्टर मिसाइलों का उपयोग कर देश की सीमा से बहुत पहले ही खतरों को पहचानकर उन्हें निष्क्रिय कर देने की योजना है।
सिस्टम कैसे काम करता है?
इस प्रणाली की तुलना इजरायल के आयरन डोम से की जा रही है। वहां यह प्रणाली तीन हिस्सों में बंटी होती है – रडार, कमांड पोस्ट और लॉन्चर। अमेरिका का 'गोल्डन डोम' भी इसी तर्ज पर काम करेगा लेकिन कहीं अधिक उन्नत तकनीक और बड़े पैमाने पर।
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रडार सिस्टम आसमान में मौजूद खतरों की पहचान करता है – जैसे उनकी गति, ऊंचाई और दिशा।
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ये आंकड़े तत्काल कमांड पोस्ट को भेजे जाते हैं, जो खतरे का आकलन कर तुरंत लॉन्चर यूनिट को निर्देश देता है।
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लॉन्चर से इंटरसेप्टर मिसाइलें दागी जाती हैं, जो खतरनाक वस्तु को हवा में ही नष्ट कर देती हैं।
अमेरिका इस सिस्टम में मोबाइल और स्थायी दोनों प्रकार के लॉन्चर इस्तेमाल करेगा। ये मिसाइलें हीट और मूवमेंट सेंसर से लैस होंगी, ताकि वे हवाई खतरे को सटीकता से पहचान सकें और निशाना बना सकें।
और क्या होगा खास?
रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिका इस प्रणाली के तहत विभिन्न तरह की मिसाइलें तैयार करेगा – कुछ कम दूरी की रक्षा के लिए और कुछ हाइपरसोनिक मिसाइलों से निपटने के लिए। यह भी कहा जा रहा है कि अमेरिका अपने मौजूदा मिसाइल सिस्टम जैसे पैट्रियट डिफेंस और एडवांस्ड रडार को 'गोल्डन डोम' के साथ जोड़ने का काम करेगा।
समय के साथ इस प्रणाली में और भी तकनीकी उन्नयन होंगे ताकि यह सभी प्रकार के हवाई खतरों से रक्षा कर सके।
क्या यह आयरन डोम जैसा होगा?
हालांकि ट्रंप की योजना इजरायल के सिस्टम से प्रेरित है, लेकिन दोनों में काफी अंतर होगा। इजरायल एक छोटा सा देश है और उसका आयरन डोम एक सीमित क्षेत्र की रक्षा करता है। इसके मुकाबले अमेरिका का क्षेत्रफल 430 गुना और जनसंख्या 35 गुना ज्यादा है। इतने बड़े क्षेत्र में एक समान रक्षा प्रणाली तैनात करना लॉजिस्टिक और फाइनेंशियल दोनों ही रूप से बहुत जटिल कार्य होगा।
फिर भी, अमेरिका की तकनीकी क्षमताएं और संसाधनों की उपलब्धता को देखते हुए, यह उम्मीद की जा सकती है कि ‘गोल्डन डोम’ भविष्य में मिसाइल रक्षा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।


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